Saturday, November 2, 2019

गोधूलि (साकी की प्रसिद्द कहानी ‘डस्क’ का हिन्दी अनुवाद ) - Published in 'कादम्बिनी' नवम्बर २०१९ अंक



गोधूलि
(साकी की प्रसिद्द कहानी ‘डस्क’ का हिन्दी अनुवाद http://epaper.livehindustan.com/epaper/Magazine/Kadambani/2019-11-01/520/Page-1.html




नार्मन गोर्ट्स्बी पार्क की बेंच पर बैठा हुआ था। उसकी पीठ के पीछे घास की पट्टी के बाद पार्क की रेलिंग थी और सामने एक चौड़ा वाहन पथ। लन्दन का प्रसिद्द हाईड पार्क कार्नर, वाहनों के शोर शराबे के साथ, उसके ठीक दाहिनी ओर स्थित था। शुरुआती मार्च की संध्या का लगभग साढ़े छह का समय। मद्धिम सी चांदनी और, ढेर सारे स्ट्रीट लैम्प्स, पूर्णरूपेण पसर चुकी गोधूलि के प्रभाव को कम करने का असफल प्रयास कर रहे थे। सड़क और फूटपाथ पर सन्नाटा था, पर पार्क में  बेंचों-कुर्सियों पर बैठीं या हिलती डुलती सी कई अस्पष्ट आकृतियाँ उस हलके से प्रकाश में मौजूद थीं, जैसे वे सभी उस उदास धुंधलके में समाहित हों ।  

      गोर्ट्स्बी को यह दृश्य भा रहा था क्योंकि वह उसके वर्तमान मूड से मेल खा रहा था। उसके अनुसार  गोधूलि हारे हुए लोगों का समय था; और ऐसे पुरुष और महिलाएं जो लड़ लड़ कर हार गये, जिन्होंने अपनी फूटी किस्मत और मृत आशाओं को यथा संभव लोगों की निगाहों से छुपा कर रखा था, इसी समय निकलते हैं, जिससे उनके झुके कंधों, मलिन वस्त्रों और, दुखी आँखों को न कोई देख पाए और न कोई प्रश्न करे। झाड़ियों और रेलिंग के यवनिका के उस पार चमकीले प्रकाश और ट्रैफिक का शोर शराबा था। गोधूलि में से प्रकाश बिखेरती खिडकियों की कतारें दीख पड़ रही थीं। यह  उन लोगों के बसेरे थे जो अपने जीवन संघर्ष में विजयी रहे थे, या कम से कम अभी हार तो नहीं ही माने थे। उस बेला में गोर्ट्स्बी अपने को हारे हुओं में ही रख रहा था । पैसे उसके लिए समस्या नहीं थे ; यदि वह चाहता तो वह आराम से उस प्रकाश और शोर के मार्ग पर निकल जाता और उन सबके  बीच स्थान ग्रहण कर लेता जो अपनी सम्पन्नता का आनन्द उठा रहे थे । वह तो किसी एक अलग, अनिर्वचनीय से उद्देश्य में असफल हो गया था। उसका हृदय दुःख और नैराश्य से भरा था और उसे उस अँधेरे के अपने आस पास के साथियों को देखने-समझने और वर्गीकृत करने में किसी दोषदर्शी सा संतोष प्राप्त हो रहां था ।

            बेंच पर उसके बगल में एक वृद्ध से सज्जन बैठे थे। उनके हाव-भाव बता रहे थे कि चुनौतियों से लड़ने की शक्ति उनमें अब न थी । उनके कपडे ठीक-ठाक से लग रहे थे, परन्तु इतने अच्छे भी नहीं, कि उनसे सम्पन्नता झलके। एक ऐसा इंसान जो अकेले ही रोने को मजबूर हो। जब वो जाने के लिए उठे तो गोर्ट्स्बी ने मन में सोचा कि यह वापस अपने घर ही जा रहे होंगे जहां इन्हें कोई पूछता ही नहीं होगा, या फिर, किसी ऐसे सूने से डेरे पर,  जिसका किराया चुका पाना ही अब इनकी एक मात्र आकांक्षा होगी । धीरे -धीरे वे अँधेरे में आँखों से ओझल हो गए, और तुरंत ही उनके स्थान पर एक नवयुवक आ कर बैठ गया । उसके कपडे तो काफी अच्छे थे परन्तु भाव-भंगिमा में वह अपने पूर्ववर्ती वृद्ध सज्जन जितना ही दुखी लग रहा था। बैठते-बैठते उसके मुंह से कुछ अपशब्द भी निकले,  जिस से गोर्ट्स्बी को यकीन हो गया की यह भी अपने हालात से खुश नहीं था

     “तुम कुछ अच्छे मूड में नहीं लगते ?”, गोर्ट्स्बी ने कहा। उसे लगा कि उस युवक की उस मुखर  अभिव्यक्ति में यह अपेक्षित था कि उसका संज्ञान लिया जाय
     युवक ने कुछ अजीब तरीके से गोर्त्स्बी को देखा......... अगर आपकी भी स्थिति मेरे जैसी हो तो आप भी अच्छे मूड में नहीं रहेंगे, उसने कहा मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी मूर्खता की है।

अच्छा?”... गोर्त्स्बी ने कहा। अत्यंत निरपेक्ष भाव से।

युवक ने कहा मैं आज ही यहाँ आया मुझे बर्कशायर स्क्वायर में पैटागोनियन होटल में रुकना था, लेकिन यहाँ आ कर पता चला की उसे तोड़ कर उसकी जगह एक थिएटर बना दिया गया है। खैर टैक्सी वाले ने मुझे एक और होटल का पता दिया और वहाँ पहुँचते ही मैंने अपने लोगों को एक पत्र लिखा, जिसमे उस नयी जगह का पता दिया था उसके बाद मैं एक साबुन की टिकिया खरीदने निकल गया। असल में,  जल्दबाजी में अपने सामान में साबुन की टिकिया रखना भूल गया था, और मुझे होटल का साबुन पसंद नहीं है थोड़ी देर इधर उधर घूमने और एक ड्रिंक लेने के बाद मैं जब वापस जाने के लिए सोचा तो अचानक मुझे एहसास हुआ कि मुझे तो अपने होटल का नाम याद ही  नहीं, और न ही वह सड़क जिस पर वह  होटल था अच्छी मुसीबत हो गयी है मेरे लिए एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिस का लन्दन में कोई दोस्त या परिचित न हो !  हाँ,  मैं अपने परिवार को टेलीग्राम भेज तो सकता हूँ, होटल के पते के लिए, लेकिन मेरा पत्र तो कल से पहले वहाँ पहुंचेगा नहीं अब स्थिति यह है है कि मेरे पास पैसे ही नहीं है । होटल से एक शिलिंग ले कर निकला था जो साबुन की टिकिया और ड्रिंक में ही खत्म हो गए, और अब बस जेब में दो पेन्स ले कर टहल रहा हूँ पता नहीं रात कैसे गुज़र होगी!

वृत्तांत के बाद एक भावपूर्ण मौन ।

कुछ क्षणों के बाद उसने कहा, आप सोच रहे होंगे की मैंने एक असंभव सी कहानी बना डाली है।उसकी आवाज़ में थोड़ा  रोष सा था

“न, न, बिलकुल भी असंभव नहीं यह।” गोर्ट्स्बी ने गंभीरता से कहा। “मुझे याद है कि एक बार मैंने भी कुछ ऐसा ही किया था एक अन्य देश की राजधानी में। और उस घटना के दौरान तो हम दो लोग थे जो उसे और उल्लेखनीय बनाता है । संयोग से हमें यह याद था कि हमारा होटल एक नहर के किनारे था, और जैसे ही ढूंढते ढूंढते हम उस नहर के पास पंहुचे, हम अपना होटल पा गये”।

“किसी विदेशी शहर में तो मेरे लिए थोड़ा और आसान होता । दूतावास जाता और वहाँ से मदद मिल जाती। लेकिन अपने ही देश के किसी शहर में ऐसी समस्या में पड़ना तो और भी कठिन है । और अब तो यदि किसी सहृदय व्यक्ति ने मुझे कुछ उधार दे दिया तब तो ठीक है , अन्यथा आज की रात तो नदी किनारे सोना पड़ेगा। पर फिर भी, मुझे यह अच्छा लगा की कम से कम आपने यह तो माना की मेरे साथ घटी घटना असंभव नहीं है

इस अंतिम वाक्य में एक गर्मजोशी सी थी। शायद इस उम्मीद में कि वह अपेक्षित सहृदयता गोर्ट्स्बी में ही हो।

हाँ हाँ, बिलकुल सही, गोर्ट्स्बी ने धीरे धीरे बोला। पर तुम्हारी कहानी की कमज़ोर कड़ी यह है की तुम्हारे पास मुझे दिखाने को वह साबुन की टिकिया नहीं है।
युवक को जैसे झटका लगा, वह अपने ओवरकोट की जेबें टटोलने लगा, और उछल कर खड़ा हो गया। लगता है कि मैंने अपनी साबुन की टिकिया भी गुम कर दी।, उसने भुनभुनाते हुए कहा।

क्या तुम्हे नहीं लगता कि” गोर्ट्स्बी ने कहा, एक ही शाम, होटल और साबुन की टिकिया, दोनों ही गुम कर देना, कुछ ज्यादा ही लापरवाही है?”

पर युवक यह सब सुनने के लिए नहीं रुका। वह तुरंत ही अपना  सर ऊँचा किये हुए आगे निकल चुका था।

अफ़सोस!गोर्ट्स्बी ने सोचा। साबुन की टिकिया लेने निकलना, यही एक मात्र विश्वसनीय हिस्सा था उसकी कहानी का, लेकिन उस में इतनी दूरदर्शिता नहीं थी की वह एक साबुन की टिकिया अपने पास रख लेता- एक अच्छी तरह पैक की हुयी साबुन की टिकिया- जैसे कोई दुकानदार पैक कर के देता है। और फिर, ऐसे काम में तो दूरदर्शिता और सावधानी अत्यंत ही आवश्यक है , सोचते हुए गोर्ट्स्बी भी चलने के लिए उठा; कि तभी उसकी आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं । नीचे बेंच के पास कागज में पैक एक अंडाकार वस्तु थी, वैसी ही जैसे कोई दक्ष दुकानदार पैक करता है।  “और यह साबुन की टिकिया के अतिरिक्त और क्या हो सकती थी , जो कि निश्चित ही  बेंच पर बैठते समय उस युवक के कोट से गिर गयी होगी” - गोर्ट्स्बी  का मन ग्लानि से भर गया। वह तेज़ी से उस ओवरकोट वाले युवक की खोज में उस दिशा में चल पड़ा जिधर वह गया था। अँधेरा बढ़ गया था और खोजते खोजते गोर्ट्स्बी भी निराश हो चुका था कि तभी उसने उस युवक को एक सड़क के किनारे देखा । ऐसा लग रहा था की वह यह  सोच नहीं पा रहा था कि  बाएं जाए या दायें। जब गोर्ट्स्बी  ने उसे पुकारा तो वह  लगभग आक्रामक सा हो कर उसकी और मुड़ा।

तुम्हारी कहानी का वह  अहम गवाह मिल गया हैगोर्ट्स्बी ने कहा, और साबुन की टिकिया उसकी और बढ़ा दी। शायद ये तुम्हारी कोट की जेब से गिर गयी थी जब तुम झटके से बेंच पर बैठे। मेरे व्यवहार और अविश्वास के लिए मुझे माफ कर दो, पर सचमुच उस समय तुम्हारे पक्ष में कुछ भी नहीं था। और जब यह टिकिया तुम्हारी सत्यता की गवाही दे रही है तो मुझे उसके पक्ष में ही निर्णय लेना होगा। मेरे विचार से एक गिन्नी से तो तुम्हारा काम चल जाएगा --

नवयुवक ने झटपट उस गिन्नी को अपनी जेब में डाल लिया ।

यह है मेरा कार्ड जिस पर मेरा पता दिया है। इस सप्ताह किसी भी दिन तुम मुझे वह गिन्नी लौटा देना, गोर्ट्स्बी ने कहा। और हाँ, साबुन की टिकिया को अब गुम नहीं करना, यह तुम्हारी अच्छी दोस्त साबित हुई है।

“सौभाग्य ही था जो यह आपको मिल गयी।“ युवक ने कहा, और शुक्रिया अदा करते हुए वह नाइट्सब्रिज की दिशा में तेजी से चल दिया।

बेचारा! सचमुच बड़ी मसीबत में था।, गोर्ट्स्बी ने स्वयं से कहा। और मेरे लिए भी यह एक सबक है कि मैं अपने आप को ज्यादा होशियार न समझा करूँ।” 

गोर्ट्स्बी फिर से पार्क की उसी बेंच की तरफ चल दिया, और जैसे ही वहाँ पहुंचा उसने देखा  कि  युवक से पहले जो वृद्ध सज्जन उस बेंच पर बैठे थे वे बेंच के नीचे कुछ ढूंढ रहे हैं।

क्या आपका कुछ गुम हो गया है?” गोर्ट्स्बी ने पूछा।

जी हाँ , श्रीमानवृद्ध सज्जन ने कहा। एक साबुन की टिकिया।



       अनुवाद – डॉ स्कन्द शुक्ल
















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