Friday, October 9, 2009

पापा, जवाब दो ना






पापा, जवाब दो ना l

अब भी याद है 30 साल
पहले की वो बात
जय करते थे हम उस पार्क में
जहां थे मोर, खरगोशऔर थे बारहसिंघे
एक झरना था, पुल था ,और था एक हाथी
बहुत बड़ा...
हाथी भी क्या खूब
जिसकी पूंछ से चढ़ते और सूंड़ से थे फिसलते
30 साल बाद पार्क अभी है , लेकिन बदरंग
हाथी है ,पर कमज़ोर
झरने की जगह बचा है, तो एक छोटा नाला
जिसमें पड़ी हैं बेजान सैकड़ों पन्नियां,
सिगरेट के डिब्बे और कंडोम
5 साल के मेरे बेटे के उस सवाल का जवाब
मेरे तो क्या
पूरे शहर के पास नहीं है
गेटकीपर,डिप्टी कलेक्टर , कलेक्टर, सीईओ,
एसपी,एसएसपी,और यहां तक कि डिविज़नल कमिश्नर
तक के पास नहीं
बेटे का सवाल था...
पापा.......वो बत्तखें कहां हैं जिनकी
कहानी तुम रोज़ सुनाते हो
जो कभी टहलती थीं किसी झरने में
जहां पानी होता था, हिरन चौकड़ी भरते थे
खरगोश थे ... उजले से,
साही भी था कांटों वाला
और था एक पत्थर का काला हाथी
क्या झूठी थी कहानियां...???
अफसरों से लदे इस शहर में
मैं मूक हूं
किससे पूछूं इसका जवाब
इसलिए सिर्फ कहता हूं
आप अगर इलाहाबाद के किसी
घर से पढ़ लिख कर बने हों कोई अफ़सर
और खेले हों कभी उस काले हाथी की गोद में
तो एक बार ज़रूर जाइएगा वहां
बचपन के रंगीन सपनों को
बदरंग हुआ
ज़रूर देखिएगा
ये विरासत शायद आपने ही
छोड़ी हो
अपने बच्चों के लिए l