Tuesday, November 5, 2024

गांठे खोलो published in Amar Ujala Kavya on 31-10-24 (https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/skand-shukla-gaanthe-kholo-2024-10-31)

 


https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/skand-shukla-gaanthe-kholo-2024-10-31


आओ,

कुछ यूं ही बातें करते हैं,

जो मन में आए वह कहते हैं,

आओ, कुछ यूं ही बातें करते हैं।

 

ना तुक हो न ताल हो,

दिल में ना मलाल हो,

जो जी में हो वह कहते है।

आओ,

कुछ यूं ही बातें करते हैं।

 

कुछ अपनी कहें, कुछ तुम्हारी सुनें,

कुछ इधर की हों, या उधर की हों

बस ढेर सी बातें हो।

आओ,

कुछ यूं ही बातें करते हैं।

 

वे भी क्या दिन थे ना!

जब दिन भर बोला करते थे,

जब से चुप्पी साधी है

अंदर सबके आंधी है,

कितना सब में छुपा हुआ!

मन में क्या-क्या बसा हुआ!

 

आओ, बैठो, गांठे खोलो,

कुछ अपनी कहो, कुछ मेरी सुनो।

आओ,

कुछ यूं ही बातें करते हैं,

जो मन में आए वह कहते हैं।

 

डॉ स्कंद शुक्ल

प्रयागराज


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