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‘तुम’ - ‘आप’
‘तुम’ से ‘आप ’ पर चले जाना;
यानी, कितना बदल जाना।
प्रीति, साहचर्य, सानिद्ध्य;
‘तुम’ में, एक निश्छल भावना।
लिहाज़, दूरी, अदब, अंतर;
‘आप ’ में है विलगाना।
जीवन में, विरल ही होता,
‘तुम ’ सदृश सम्बन्धों का बन पाना;
बन गये जो, सहेज वे रखना,
न उन्हें 'आप ' होने देना ।
स्कन्द शुक्ल
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