Tuesday, December 8, 2020

मास्क - एक कविता

 

मास्क


मास्क अच्छे हैं।

छुपा लेते हैं

सफ़ेद होती मूंछों को

होठों के ऊपर

उभर रही झुर्रियों को;

मास्क अच्छे हैं।

 

छुपा लेते हैं

बेमन दी जाने वाली

झूठी मुस्कानों को

या देखकर कुछ ऐसा

इच्छा हो मुँह बिचकाने को;

मास्क अच्छे हैं।

 

छुपा लेते हैं

बेबस चेहरों पर

खरोंच के निशानों को

निढाल पसरे हुए

मजबूर अरमानों को;

मास्क अच्छे हैं।

 

छिप पाता यह सब

क्या सचमुच?

या फिर अगाध

गहराईयाँ आँखों की,

प्रतिध्वनित करती रहतीं

सच को?

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