मास्क
मास्क अच्छे हैं।
छुपा लेते हैं
सफ़ेद होती मूंछों को
होठों के ऊपर
उभर रही झुर्रियों को;
मास्क अच्छे हैं।
छुपा लेते हैं
बेमन दी जाने वाली
झूठी मुस्कानों को
या देखकर कुछ ऐसा
इच्छा हो मुँह बिचकाने को;
मास्क अच्छे हैं।
छुपा लेते हैं
बेबस चेहरों पर
खरोंच के निशानों को
निढाल पसरे हुए
मजबूर अरमानों को;
मास्क अच्छे हैं।
छिप पाता यह सब
क्या सचमुच?
या फिर अगाध
गहराईयाँ आँखों की,
प्रतिध्वनित करती रहतीं
सच को?
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