पश्चाताप
माँ-माँ कहते रहते तुम
पर कर न पाती तुमसे बात
मन की बातें सुनने का भी
समय नही था मेरे पास ।
जब कागज पर रंग भरकर
दिखलाते तुम फूल और चिडिया
तब मैं कहती वक्त नहीं है
बेटा अभी ज़रा ठहर जा ।
माथे पर चुम्बन दे देती
कम्बल में चुपचाप सुलाकर
पर पास तुम्हारें रुक न पाती
सुना न पाती लोरी गाकर ।
कर्तब्य कर दिए सब पूरे
सुख सुविधाए तुमको देकर
पर बचपन में संग तुम्हारें
खेल सकी क्या जी भरकर ?
जीवन कितना छोटा हैं
और गति इतनी तेज़
बड़े हो गए इतने तुम
और साल गुज़र गए कितने एक ।
ना तुम मेरे पास हो अब
ना कागज़ पर सूरज , बादल ,
बस यादें आँखें नम करती
जब छुडाती थी तुमसे आँचल।
अब समय बहुत हैं मेरे पास
दिन काटे नहीं हैं कटते
काश !सालो पीछॆ जाकर
मैं वो सब करती, जो तुम कहते।
-- अलका अग्रवाल
माँ-माँ कहते रहते तुम
पर कर न पाती तुमसे बात
मन की बातें सुनने का भी
समय नही था मेरे पास ।
जब कागज पर रंग भरकर
दिखलाते तुम फूल और चिडिया
तब मैं कहती वक्त नहीं है
बेटा अभी ज़रा ठहर जा ।
माथे पर चुम्बन दे देती
कम्बल में चुपचाप सुलाकर
पर पास तुम्हारें रुक न पाती
सुना न पाती लोरी गाकर ।
कर्तब्य कर दिए सब पूरे
सुख सुविधाए तुमको देकर
पर बचपन में संग तुम्हारें
खेल सकी क्या जी भरकर ?
जीवन कितना छोटा हैं
और गति इतनी तेज़
बड़े हो गए इतने तुम
और साल गुज़र गए कितने एक ।
ना तुम मेरे पास हो अब
ना कागज़ पर सूरज , बादल ,
बस यादें आँखें नम करती
जब छुडाती थी तुमसे आँचल।
अब समय बहुत हैं मेरे पास
दिन काटे नहीं हैं कटते
काश !सालो पीछॆ जाकर
मैं वो सब करती, जो तुम कहते।
-- अलका अग्रवाल
कविता के भाव अच्छे हैं जो किसी भी कामकाजी माँ के अनुभव को प्रतिबिम्बित करते हैं।
ReplyDeleteअलबत्ता, शिल्प की कसौटी पर कविता थोड़ी कमजोर लगती है। इसके बजाय यदि इसके सभी वाक्यों को सीधा करके गद्य के रूप में लिख दिया जाय तो शानदार आलेख या रेखाचित्र तैयार हो जाएगा। :)
A very good pick. It is a touching poem.
ReplyDeletei liked it very much. touching.
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